Shayri By Roshan
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बनके मुर्ति सि, खडि हुं मै खिडकि पर,
कि एक नजर पड जाये, उनकि मेरी खूबसुरती पर,
अब वो नजरे उठाये, देख रहे है मुझको,
और मै नजरे हटा रहि हुं, उनकि इस गुस्ताखि पर,
कहना तो चाहती हुं, बहुत कुछ मै उनसे,
मगर होंठ मेरे कांप रहें है, मेरे दिल कि खुदगर्जी पर,
नजरों हि नजरो मे, वो बोल रहे है कुछ हमसे,
हमे अब वो तडपा रहे है, हमारी नजरों से दूर होकर……!
लेखक: रोशन धर दुबे (5 अप्रैल 2012, दोपहर 1 बजे)
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