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मंजिल मिल ही जायेगी एक दिन, भटकते-भटकते ही सही …

Shayri By Roshan
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मंजिल मिल ही जायेगी एक दिन,
भटकते-भटकते ही सही ।
गुमराह तो वो है,
जो घर से निकले ही नहीं ॥

खुशियां मिल जायेगी एक दिन,
रोते रोते हि सही ॥।
कमजोर दिल के है वो.
जो हसने को सोचते ही नहीं ॥॥

पुरे होंगे हर वो ख्वाब.
जो देखते है अंधेरी रातों मे ॥॥।
ना समझ हैं वो.
जो डर से पुरी रात सोते ही नही ॥॥॥

मिलेगा प्यार किसि ना किसि का,
एक दिन उनके लिये भी ॥॥॥।
वो लोग ही बुझदिल हैं.
जो किसि से प्यार करते ही नहीं……….. ॥॥॥॥

मंजिल मिल ही जायेगी एक दिन,
भटकते-भटकते ही सही ।
गुमराह तो वो है,
जो घर से निकले ही नहीं……………………………

लेखक : रोशन धर दुबे ,,, लेखन तिथि : 2 मर्च 2012
(सफलता को पहुंचने के लिये कदम तो बडाना हि पडेगा)

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